महिलाओं को हैं पुरुषों के बराबर अधिकार
महिलाएँ अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल नहीं कर पातीं, अदालत जाना तो दूर की बात है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि महिलाएँ खुद को इतना स्वतंत्र नहीं समझतीं कि इतना बड़ा कदम उठा सकें। जो किसी मजबूरी में (या साहस के चलते) अदालत जा भी पहुँचती हैं, उनके लिए कानून की पेंचीदा गलियों में भटकना आसान नहीं होता।
दूसरे, इसमें उन्हें किसी का सहारा या समर्थन भी नहीं मिलता। इसके कारण उन्हें घर से लेकर बाहर तक विरोध के ऐसे बवंडर का सामना करना पड़ता है, जिसका सामना अकेले करना उनके लिए कठिन हो जाता है।
इस नकारात्मक वातावरण का सामना करने के बजाए वे अन्याय सहते रहना बेहतर समझती हैं। कानून होते हुए भी वे उसकी मदद नहीं ले पाती हैं। आमतौर पर लोग आज भी औरतों को दोयम दर्जे का नागरिक ही मानते हैं। कारण चाहे सामाजिक रहे हों या आर्थिक, परिणाम हमारे सामने हैं। आज भी दहेज के लिए हमारे देश में हजारों लड़कियाँ जलाई जा रही हैं। रोज न जाने कितनी ही लड़कियों को यौन शोषण की शारीरिक और मानसिक यातना से गुजरना पड़ता है। कितनी ही महिलाएँ अपनी संपत्ति से बेदखल होकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
महिलाएँ अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल नहीं कर पातीं, अदालत जाना तो दूर की बात है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि महिलाएँ खुद को इतना स्वतंत्र नहीं समझतीं कि इतना बड़ा कदम उठा सकें।
महिला श्रमिकों का गाँव से लेकर शहरों तक आर्थिक व दैहिक शोषण होना आम बात है। अगर इन अपराधों की सूची तैयार की जाए तो न जाने कितने पन्ने भर जाएँगे। ऐसा नहीं है कि सरकार को इन अत्याचारों की जानकारी नहीं है या फिर इनसे सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं है। जानकारी भी है और कानून भी हैं, मगर महत्वपूर्ण यह है कि इन कानूनों के बारे में आम महिलाएँ कितनी जागरूक हैं? वे अपने हक के लिए इन कानूनों का कितना उपयोग कर पाती हैं?
सब यह जानते हैं कि संविधान ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि कानून के सामने स्त्री और पुरुष दोनों बराबर हैं। अनुच्छेद 15 के अंतर्गत महिलाओं को भेदभाव के विरुद्ध न्याय का अधिकार प्राप्त है। संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के अलावा भी समय-समय पर महिलाओं की अस्मिता और मान-सम्मान की रक्षा के लिए कानून बनाए गए हैं, मगर क्या महिलाएँ अपने प्रति हो रहे अन्याय के खिलाफ न्यायालय के द्वार पर दस्तक दे पाती हैं?
साक्षरता और जागरूकता के अभाव में महिलाएँ अपने खिलाफ होने वाले अन्याय के विरुद्ध आवाज ही नहीं उठा पातीं। शायद यही सच भी है। भारत में साक्षर महिलाओं का प्रतिशत 54 के आसपास है और गाँवों में तो यह प्रतिशत और भी कम है। तिस पर जो साक्षर हैं, वे जागरूक भी हों, यह भी कोई जरूरी नहीं है। पुराने संस्कारों मेंजकड़ी महिलाएँ अन्याय और अत्याचार को ही अपनी नियति मान लेती हैं और इसीलिए कानूनी मामलों में कम ही रुचि लेती हैं।
हमारी न्यायिक प्रक्रिया इतनी जटिल, लंबी और खर्चीली है कि आम आदमी इससे बचना चाहता है। अगर कोई महिला हिम्मत करके कानूनी कार्रवाई के लिए आगे आती भी है, तो थोड़े ही दिनों में कानूनी प्रक्रिया की जटिलता के चलते उसका सारा उत्साह खत्म हो जाता है। अगर तह में जाकर देखें तो इस समस्या के कारण हमारे सामाजिक ढाँचे में भी नजर आते हैं। महिलाएँ लोक-लाज के डर से अपने दैहिक शोषण के मामले कम ही दर्ज करवाती हैं। संपत्ति से जुड़े हुए मामलों में महिलाएँ भावनात्मक होकर सोचती हैं।
वे अपने परिवार वालों के खिलाफ जाने से बचना चाहती हैं, इसीलिए अपने अधिकारों के लिए दावा नहीं करतीं। लेकिन एक बात जान लें कि जो अपनी मदद खुद नहीं करता, उसकी मदद ईश्वर भी नहीं करता अर्थात अपने साथ होने वाले अन्याय, अत्याचार से छुटकारा पाने के लिए खुद महिलाओं को ही आगे आना होगा। उन्हें इस अत्याचार, अन्याय के विरुद्ध आवाज उठानी होगी।
साथ ही समाज को भी महिलाओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा। वे भी एक इंसान हैं और एक इंसान के साथ जैसा व्यवहार होना चाहिए वैसा ही उनके साथ भी किया जाए तो फिर शायद वे न्यायपूर्ण और सम्मानजनक जीवन जी सकेंगी।
महिलाओ का शोषण और कानून
आज भारत में दुनिया के विभिन्न भागो में भिन्न-भिन्न अवसरों के माध्यम से महिलाए अपने विकाश की झंडा आसमानों में लहरा रही है इनके शोषण में कोई कमी नहीं दिख रही है तथा इनको आगे बढ़ने के लिए तमाम कानून भी है, फिर भी शोषक बर्ग का कोई असर नहीं देखने को मिलता है जिसे सुधारने की जरुरत है वृतानिया हुकूमत से लम्बे संघर्ष व अनगिनत बलिदानों के उपरांत आजादी मिलने के बाद, आजाद भारत के संबिधान में भारतीय महिला को तमाम अधिकार प्रदान किये गए है शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए बहुत सरे विद्यालयों की स्थापना किया आजाद भारत में दिनोदिन राजनैतिक सामाजिक क्षेत्रो व शिक्षा रोजगार के क्षेत्रो में महिलाओ ने तेजी से विकाश किया एक प्रधानमंत्री व कुशल प्रशासक के रूप में इंदिरा गाँधी ने विश्व पटल पर अपने अमित हस्ताक्षर करके भारतभूमि की शान बढाई वर्तमान समय में भी राजनैतिक क्षेत्रो में महिला शक्ति का वर्चस्व कायम है सोनिया गाँधी, मीरा कुमार, ममता बनर्जी मायावती, जयललिता आदि की नेतृत्व शक्ति व कार्य शैली का लोहा विपक्षी दल भी मान रहे है भारत के सर्वोच पद रास्ट्रपति एक नारी शक्ति के रूप में प्रतिभा पाटिल आसीन है सार्वजनिक व सामाजिक राजनैतिक क्षत्रो में अपने विशेष योगदान के कारण सुभाषिनी अली, किरण बेदी, मेघा पाटेकर का नाम सम्मानपूर्वक लिया जाता है
तमाम कानूनी अधिकारों के वावजूद आज भारत में आम महिलाओ की स्थिति अच्छी नहीं है उच्च पदों पर महिलाओ के होने के वावजूद भी आज आम महिला को उसका अधिकार व सम्मान प्राप्त नहीं है ग्रामीणों में महिला शिक्षा का प्रचार प्रसार होने के वावजूद भी अभी गावो में महिलाओ को अज्ञानता मिटी नहीं है अशिक्षित महिलाओ का अपने अधिकारों के बारे में न जानना बहुत बड़ा अभिशाप है क्योकि बिभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार महिलाओ को जागरूक करने का प्रयास कर रही है,
फिर भी ग्रामीण महिलाओ में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक व कानूनी जागरूकता के महिलाओ को अधिकार व सम्मान मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकीन है भारत में सामाजिक व पारिवारिक स्तर पर देखा जाय तो स्त्री की दशा दयनीय है समाज के नैतिक पतन का परिणाम है नारी को पारिवारिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है महिलाओ को देश के तमाम कानूनी अधिकार प्राप्त है इसके वावजूद आम महिलाओ को अपना समय घर की चहारदीवारी में पारिवारिक दायित्वों को पूरा करते हुए गुजारना पड़ रहा है परिवार व रिस्तो को निभाने वाली आम महिला आज अपने अधिकारों से वंचित है जागरूकता व शिक्षा के अभाव में आम महिला के साथ पारिवारिक स्तर पर सब कुछ ठीक ठाक नहीं है यह ठीक है की महिलाए शीर्ष पदों पर पहुचकर महिला शक्ति का झंडा लहरा रही है समाज में रितीरिवाजो को देखते हुए परिवार में महिला अपनी जिम्मेदारियों एव घरेलू कम काज में लगी रहती है यदि महिला अपने कानूनी अधिकार जान जाए, तो उन अधिकारों से महिलाओ का विकास निश्चित है तो परिवार व समाज में बहुत अधिक सुधार हो जायेगा इससे बड़ा क्रन्तिकारी परिवर्तन महिलाओ के हित में कुछ और नहीं हो सकता महिला संरक्षण अधिनियम २००५ के तहत महिलाओ को परिवारिक हिंसा के बिरुद्ध संरक्षण व सहायता का कानूनी अधिकार प्राप्त है
यदि कोई भी व्यक्ति अपने साथ रह रही महिला को शारीरिक हिंसा अर्थात मारपीट करके शारीरिक क्षति पहुचाता है तो पीड़ित महिला संरक्षण अधिनियम २००५ के तहत सहायता प्राप्त करती है मौखिक और भावनात्मक हिंसा जिसमे अपमान, गालीया देना,चारीत्रिक दोषारोपण, संतान न होने पर अपमानित करना, दहेज मागना, शैक्षणिक संस्थान के अध्यन से रोकना, नौकरी करने से मना करना, समान्य परिस्थियों में ब्यक्ति से मिलने पर रोक लगाना विबाह करने के लिए जबरदस्ती करना, पसंद्शुदा ब्यक्ति से विवाह पर रोक लगाना आत्महत्या की धमकी देकर कोई कार्य करवाने की चेष्ठा करना, मौखिक दुर्वयवहार के साथ-साथ महिलाओ को आर्थिक हिंसा के विरुद्ध भी उक्त अधिनियम में कानूनी अधिकार प्राप्त है
आर्थिक हिंसा की श्रेणी में महिलाओ को या उसके बच्चो को गुजरा भत्ता न देना, खाना, कपड़ा , दवा न उपलब्ध कराना, महिलाओ को रोजगार चलाने से रोकना या विघ्न डालना, रोजगार की अनुमती न देना, घरेलू उपयोग की वस्तुओ के उपयोग पर पाबंदी लगाना,फिर भी ग्रामीण महिलाओ में कोई उधर नहीं हो पा रहा है यह कहा जा सकता है की शैक्षणिक व क़ानूनी जागरूकता के महिलाओ को अधिकार व सम्मान मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
भारत में सामाजिक व पारिवारिक स्तर पर देखा जाय तो स्त्री की दशा दयनीय है समाज के नैतिक पतन का परिणाम है नारी को पारिवारिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है महिलाओ को देश में तमाम कानूनी अधिकार प्राप्त है इसके वावजूद आम महिलाओ को अपना समय घर की चहारदीवारी में पारिवारिक दायित्वों को पूरा करते हुए गुजारना पड़ रहा है
लड़कियों को समाज में सामान अधिकार
लड़कियों को समाज में सामान अधिकार मिलना चाहिए उन्हें भी वही आजादी वही सम्मान मिलना चाहिए जो लड़को को मिलता है !
हमारा भारत पुरुष प्रधान देश माना जाता रहा हैं लकिन अब भारत धीरे-धीरे अपनी सोच बदल रहा है और महिलाओ की भागीदारी भी समाज में बढ़ी हैं, महिलाओ ने हरेक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा उजागर किया है ! इसके कई उदाहरण हैं जो इस बात को झुठला रहा हैं की हमारा पुरुष प्रधान देश हैं !
क्योकि आज भारत की प्रथम नागरिक एक महिला है और भारत की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष भी एक महिला हैं ! भारत के कई राज्य की मुख्य मंत्री भी महिला हैं !महिलाओ की भागीदारी बढाने के किये महिलाओ को हरेक क्षेत्र में आरक्षण दिया जा रहा हैं!
किसी भी देश या प्रान्त में बदलाव का सबसे बड़ा कारन होता हा वह के लोल्गो के सोच में बदलाव !
बिहार – इस क्षेत्र में भी पीछे हैं आज भी बिहार में लड़कियों को वो सम्मान नहीं मिल रहा हैं जो मिलना चाहिए इसका सबसे बड़ा कारन हैं लोगो के सोच में आज भी नहीं बदला हैं !
किसी भी देश या प्रान्त में बदलाव का सबसे बड़ा कारन होता हा वह के लोल्गो के सोच में बदलाव !
बिहार – इस क्षेत्र में भी पीछे हैं आज भी बिहार में लड़कियों को वो सम्मान नहीं मिल रहा हैं जो मिलना चाहिए इसका सबसे बड़ा कारन हैं लोगो के सोच में आज भी नहीं बदला हैं !
अगर बिहार में लड़को और लड़कियों को समाज एक नजर से देखने लगे तो मैं दावे के साथ कह सकता हु की बिहार ही नहीं बल्कि देश की बहूत साड़ी समस्याए अपने आप ख़त्म हो जायेगी ! इसका सबसे बड़ा असर बिहार की जनसँख्या पर पड़ेगी , इससे बिहार की जनसँख्या काफी हद तक कम हो जायेगी !
सबसे बड़ी समस्या ये हैं की बिहार के पड़े लिखे लोग भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं की बेटा और बेटी एक जैसे होते हैं , उन्हें तो सिर्फ बेटा चाहिए ! बंश चलाने के लिए बेटी नहीं, बेटा चाहिए क्यों की उन्हें लगता हैं इससे उनका बंश आगे नहीं बढेगा ! दूसरा कारण हैं बुढापे में उन्हें सहारा कौन देगा ऐसे कई सबालो ने लोगो के सोच को ताला लगा दिया हैं जिसके कारण वे इस तत्व से बहार नहीं निकल पा रहे हैं ! बेटे की चाह ने लोगो के सोच को इस तरह से जकड रखा हैं की उन्हें और कुछ समझ नहीं आता हैं ! बिहार के पढ़े लिखे लोगो के भीं 4-4 , 5-5 बेटिया हैं इसमें उनका बेटियो के प्रति प्यार नहीं हैं बल्कि उन्हें बेटे की चाह ने 5-5 बेटियों के माँ-बाप बना दिया हैं!
यदि लड़कियों को समाज सामान नजर से देखती तो शायद ये नौबत नहीं होती बिहार की जो आज हैं , बिहार भी एक विकसित राज्य होती !
मेरी व्यक्तिगत राय हैं की बेटा हो या बेटी सिर्फ एक संतान होना चाहिए आप उसे अच्छी परवरिश दीजिये , बिटिया भी आज बहूत कुछ कर सकती हैं जो बेटा नहीं कर सकता !
मैं इस बात खुले मन से कहता हूँ की बेटिया अपने माँ-बाप के प्रति ज्यादा सजग रहती हैं और अपने माँ-बाप का सम्मान भी बेटे से कही अधिक करती हैं फिर बेटे को ही समाज प्राथिमिकता दे रही हैं !
यदि आपके एक बच्चे होंगे तो आप उस पर और अपने आप पर ज्यादा ध्यान दे पायेगे ! ज्यादा बच्चो की वजह से माँ-बाप की खुद की जिन्दगी सिमट कर रह जाती हैं क्यों की आप अपनी सारी जिन्दगी बच्चो के खाने-पीने , और बच्चो के लिए दबा इया जुटाने में लगा देते हैं !
सिर्फ एक सोच से पुरे समाज में बदलाव आ सकता हैं और आज समाज के किसी चीज को सबसे पहले बदलने की जरुरत हैं तो वह हैं लोगो की सोच को ! तभी हमारा बिहार प्रगति कर सकता हैं और लड़कियों को समाज में सामान अधिकार मिल सकता हैं !