Friday, January 15, 2016

व्यपहरण पर कानून

व्यपहरण पर कानून
(धारा 362, 364, 364क, 365, 366, 367, 369 भारतीय दंड संहिता)
व्यपहरणः-
किसी बालिग व्यक्ति को जोर जबरदस्ती से या बहला फुसला कर किसी कारण से कहीं ले जाया जाए तो यह व्यपहरण का अपराध है। यह कारण निम्नलिखित हो सकते है। जैसेः- फिरौती की रकम के लिए, उसे गलत तरीके से कैद रखने के लिए, उसे गंभीर चोट पहुँचाने के लिए, उसे गुलाम बनाने के लिए इत्यादि।
धारा 366 भारतीय दंड संहिता :-
धारा के अन्तर्गत विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी स्त्री को अपहृत करना या उत्प्रेरक करने के बारे में बताया गया है। इसमें बताया गया है कि जो कोई किसी स्त्री का अपहरण या व्यपहरण उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिए उस स्त्री को विवश करने के आशय से या यह विवश की जायेगी, यह सम्भाव्य जानते हुए अथवा आयुक्त सम्भोग करने के लिए उस स्त्री को विवश, यह विलुब्ध करने के लिए, यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिनकी अवधि दस वर्ष तक से भी दण्डनीय होगी
अनैतिक व्यापार पर कानून
(धारा 366 क, 366ख, 372, 373 भारतीय दंड संहिता)
अनैतिक व्यापार :-
यदि कोई व्यक्ति किसी भी लड़की को वेश्यावृति के लिए खरीदता या बेचता है तो उसे दस साल तक की कैद और जुर्माना की सजा होगी।
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956
यदि कोई व्यक्ति वेश्यावृति के लिए किसी व्यक्ति को खरीदता बेचता, बहलाता फुसलाता या उपलब्ध करवाता है तो उसे तीन से चौदह साल तक की कैद और जुर्माने की सजा होगी।
धारा 366 क भारतीय दंड संहिता :-
धारा 366 क के अन्तर्गत अप्राप्त लड़की को उपादान के बारे में बताया गया है। इसके अन्तर्गत कहा गया है कि जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु की अप्राप्तवय लड़की को, अन्य व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्द्वारा विवश या विलब्ध किया जाएगा, यह सम्भाव्य जानते हुए ऐसी लड़की को किसी स्थान से जाने को कोई कार्य करने को, किसी भी साधन द्वारा उत्प्रेरित करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेञ्गी दण्डित किया जाएगा और जुर्माना से भी दण्डनीय होगा।
धारा 366 ख भारतीय दंड संहिता :-
धारा 366 (ख) के अन्तर्गत विदेश से लड़की को आयात करने के बारे में बताया गया है कम आयु की किसी लड़की का भारत के बाहर उसके किसी देश से या जम्मू-कश्मीर से आयात उसे किसी अन्य व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्द्वारा विवश या विलुब्ध की जाएगी, यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा, वह कारवास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 372 भारतीय दंड संहिता :-
वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय को बेचने के बारे में प्रावधान करती है। इसके अंतर्गत बताया गया है कि जो कोई 18 वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय से कि ऐसा व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए या किसी विधि विरुद्ध या दुराचारिक प्रयोजन के लिए कम में लाया या उपयोग किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा, या उपभोग किया जाएगा, बेचेगा, भाड़े पर देगा या अन्यथा व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
(6 धारा के अन्तर्गत 2 स्पष्टीकरण दिये गये हैं।स्पष्टीकरण 1 के अन्तर्गत बताया गया है कि जबकि अठारह वर्ष से कम आयु की नारी किसी वेश्या को, या किसी अन्य व्यक्ति को, जो वेश्यागृह चलाता हो या उसका प्रबंध करता हो, बेची जाए, भाड़े पर दी जाए या अन्यथा व्ययनित की जाए, तब इस प्रकार ऐसी नारी को व्ययनित करने वाले व्यक्ति के बारे में,जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि उसने उसको इस आशय से व्ययनित किया है कि वह वेश्यावृत्ति के उपभोग में लाई जाएगी। स्पष्टीकरण -2 के अन्तर्गत आयुक्त सम्भोग से इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे व्यक्तियों में मैथुन अभिप्रेत है जो विवाह से संयुक्त नहीं है, या ऐसे किसी सम्भोग या बंधन से संयुक्त नहीं कि जो यद्यपि विवाह की कोटि में तो नहीं आता तथापि इस समुदाय की, जिसके वे हैं या यदि वे भिन्न समुदायों के हैं, जो ऐसे दोनों समुदायों की स्वीय विधि या रूञ्ढि़ द्वारा उनके बीच में विवाह सदृश्य सम्बन्ध अभिसात किया जाता है।
धारा 373 भारतीय दंड संहिता :-
वेश्यावृत्ति के प्रयोजन के लिए अप्राप्वय का खरीदना आदि के बारे में हैं जो कोई अठारह वर्ष में कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय के बारे में है कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से आयुक्त सम्भोग करने के लिए या किसी विधि विरुद्ध दुराचारिक प्रयोजन के लिए काम में लाया या उपयोग किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा या उपभोग किया जाएगा, खरीदेगा, भाड़े पर लेगा या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्रेत करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। इस धारा के स्पष्टीकरण के अन्तर्गत बताया गया है कि अठारह वर्ष से कम आयु की नारी को खरीदने वाला, भाड़े पर लेने वाला या अन्यथा उसका कब्जा करने वाले तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि ऐसी नारी का कब्जा उसने इस आशय से अभिप्रेत किया है कि वह वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए उपभोग में लायी जाएगी।
छेड़खानी पर कानून
(धारा 509,294, भारतीय दंड संहिता)
शब्द, इशारा या मुद्रा जिससे महिला की मर्यादा का अपमान हो
यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री की मर्यादा का अपमान करने की नीयत से किसी शब्द का उच्चारण करता है या कोई ध्वनि निकालता है या कोई इशारा करता है या किसी वस्तु का प्रदर्शन करता है, तो उसे एक साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा होगी।
अश्लील मुद्रा, इशारे या गाने
यदि कोई व्यक्ति दूसरों को परेशान करते हुए सार्वजनिक स्थान पर या उसके आस-पास कोई अश्लील हरकत करता है या अश्लील गाने गाता, पढ़ता या बोलता है, तो उसे तीन महीने कैद या जुर्माना या दोनों की सजा होगी।
स्त्री के अभद्र रूप से प्रदर्शन पर कानून
(स्त्री अशिष्ट् रूप (प्रतिशेध) अधिनियम 1986)
स्त्री का अभद्र रूप या चित्रांकनः
यदि कोई व्यक्ति विज्ञापनों, प्रकाशनों, लेखों, तस्वीरों, आकृतियों द्वारा या किसी अन्य तरीके से स्त्री का अभद्र रूपण या प्रदर्शन करता है तो उसे दो से सात साल की कैद और जुर्माने की सजा होगी।
कार्यस्थल पर यौन शोषण पर कानून
(उच्चतम न्यायालय का विशाखा निर्णय, 1997)
-कार्यस्थल पर किसी भी तरह के यौन शोषण जैसे शारीरिक छेड़छाड़, यौन संबंध की माँग या अनुरोध, यौन उत्तेजक कथनों का प्रयोग, अश्लील तस्वीर का प्रदर्शन या किसी भी अन्य प्रकार का अनचाहा शारीरिक, शाब्दिक, अमौखिक आचरण जो अश्लील प्रकृति का हो, की मनाही है।
-यह कानून उन सभी औरतों पर लागू होता है, जो सरकारी, गैर सरकारी, पब्लिक, सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में कार्य करती हैं।
-पीडि़त महिला को न्याय दिलाने के लिए हर संस्था/दफ्तर में एक यौन शोषण शिकायत समिति का गठन होना आवश्यक है। इस समिति की अध्यक्ष एक महिला होनी चाहिए। इसकी पचास प्रतिशत सदस्य महिलाएं होनी चाहिए तथा इसमें कम से कम एक बाहरी व्यक्ति को सदस्य होना चाहिए।

अन्य यौन अपराध से सम्बंधित कानून

अन्य यौन अपराध से सम्बंधित कानून
धारा 354 भारतीय दंड संहिता :-
स्त्री की मर्यादा को क्षति पहुंचाने के लिए हमले या जबरदस्ती का इस्तेमाल
यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की मर्यादा को भंग करने के लिए उस पर हमला या जबरदस्ती करता है, तो उसे दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा होगी।
अपहरण पर कानून (धारा 363 क भारतीय दंड संहिता)
अपहरणः
किसी नाबालिग लड़के, जिसकी उम्र सोलह साल से कम है या नाबालिग लड़की, जिसकी उम्र अट्ठारह साल से कम है, को उसके सरंक्षक की आज्ञा के बिना कहीं ले जाना अपहरण का अपराध है तथा इसके लिए अपराधी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।
अगर कोई बहला फुसला कर भी बच्चों को ले जाए तो कहने को तो बच्चा अपनी मर्जी से गया, लेकिन कानून में वह अपराध होगा।

बलात्कार से पीडि़त स्त्री को कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए

बलात्कार से पीडि़त स्त्री को कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि वो न्याय प्राप्त कर सकें :-
- अपने परिवार वालों या दोस्तों को बतायें
-नहाए नहीं
-वह कपड़े जिनमें बलात्कार हुआ है, उन्हें धोए नहीं। यह सब करने से शरीर या कपड़ों पर होने वाले महत्वपूर्ण सबूत मिट जाएँगे।
-बलात्कारी का हुलिया याद रखने की कोशिश करें।
-तुरंत पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) लिखवाएं। एफ.आई.आर. लिखवाते वक्त परिवार वालों को साथ ले जाएँ। घटना की जानकारी विस्तार से रिपोर्ट में लिखवाएँ।
-एफ.आई.आर. में यह बात जरुर लिखवाएँ कि जबरदस्ती(बलात्कार) सम्भोग हुआ है।
-यदि बलात्कारी का नाम जानती है, तो पुलिस को अवश्य बताएं।
-यह उस स्त्री का अधिकार है कि एफ.आई.आर. की एक कापी उसे मुफ्त दी जाए।
-यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह स्त्री की डॉक्टरी जांच कराए।
-डॉक्टरी जांच की रिपोर्ट की कापी जरुर लें।
-पुलिस जांच के लिए स्त्री के कपड़े लेगी, जिस पर बलात्कारी पुरुष के वीर्य, खून, बाल इत्यादि हो सकते हैं। पुलिस स्त्री के सामने उन कपड़ों को सील-बंद करेगी। उन सील बंद कपड़ों की रसीद जरुर लें।
-कोर्ट में बलात्कार का केस बंद कमरे में चलता है यानि कोर्ट में केवल केस से संबंधित व्यक्ति ही उपस्थित रह सकते हैं।
-पीडि़त स्त्री की पहचान को प्रकाश में लाना अपराध है।
-पीडि़त स्त्री का पूर्व व्यवहार नहीं देखा जाना चाहिए।
अगर पुलिस एफ.आई.आर. लिखने से मना कर दे, तो आप निम्न जगहों पर शिकायत कर सकते हैं :-
-कलेक्टर
-स्थानीय या राष्ट्रीय समाचार पत्र
-राष्ट्रीय महिला आयोग
कानून बलात्कार से पीडि़त महिला को क्रिमिनल इज्यूरीस कंञ्पेन्सेशन बोर्ड के द्वारा आर्थिक मुआवजा भी दिलवाता है।

बलात्कार पर कानून

बलात्कार पर कानून
(धारा 375, 376, 376क, 376ख, 376ग, 376घ भारतीय दंड संहिता)
धारा 375 भारतीय दंड संहिता :-
जब कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग करता है तो उसे बलात्कार कहते हैं। सम्भोग का अर्थ - पुरुष के लिंग का स्त्री की योनि में प्रवेश होना ही सम्भोग है। किसी भी कारण से सम्भोग क्रिया पूरी हुई हो या नहीं वह बलात्कार ही कहलायेगा। बलात्कार तब माना जाता है यदि कोई पुरुष किसी स्त्री साथ निम्नलिखित परिस्थितियों में से किसी भी परिस्थिति में मैथुन करता है वह पुरुष बलात्कार करता है, यह कहा जाता है-
-उसकी इच्छा के विरुद्ध
-उसकी सहमति के बिना
-उसकी सहमति डरा धमकाकर ली गई हो
-उसकी सहमति नकली पति बनकर ली गई हो जबकि वह उसका पति नहीं है
-उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह दिमागी रूप से कमजोर या पागल हो
-उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह शराब या अन्य नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं हो
-यदि वह 16 वर्ष से कम उम्र की है, चाहे उसकी सहमति से हो या बिना सहमति के
-15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा किया गया सम्भोग भी बलात्कार है
धारा 376 भारतीय दंड संहिता :-
धारा 376 बलात्संग के लिए दण्ड का प्रावधान बताती है। इसके अन्तर्गत बताया गया है कि (1) द्वारा उपबन्धित मामलों के सिवाय बलात्संग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिनकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन के लिए दस वर्ष के लिए हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, किंञ्तु यदि वह स्त्री जिससे बलात्संग किया गया है, उसकी पत्नी है और बारह वर्ष से कम आयु की नहीं है तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी अथवा वह जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा। परंतु न्यायालय ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से जो निर्णय में उल्लिखित किए जाएंगे, सात वर्ष से कम की अवधि के कारावास का दण्ड दे सकेगा।
बलात्कार केस जिनमें अपराध साबित करने की जिम्मेदारी दोषी पर हो न कि पीडि़त स्त्री पर। यानि वे केस जिनमें दोषी व्यक्ति होने को अपने निर्दोष होने का सबूत देना हो।
उपधारा (2) के अन्तर्गत बताया गया है कि जो कोई
-पुलिस अधिकारी होते हुए- उस पुलिस थाने की सीमाओं के भीतर जिसमें वह नियक्त है, बलात्संग करेगा, या किसी थाने के परिसर में चाहे वह ऐसे पुलिस थाने में, जिसमें वह नियुक्त है, स्थित है या नहीं, बलात्संग करेगा या अपनी अभिरक्षा में या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में किसी स्त्री से बलात्संग करेगा, या
- लोक सेवक होते हुए, अपनी शासकीय स्थिति का फायदा उठाकर किसी ऐसी स्त्री से, जो ऐसे लोक सेवक के रूप में उसकी अभिरक्षा में या उसकी अधीनस्थ किसी लोक सेवक की अभिरक्षा में है, बलात्संग करेगा, या
- तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा यह उसके अधी स्थापित किसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान के या स्त्रियों या बालकों की किसी संस्था के प्रबंध या कर्मचारीवृंद में होते हुए अपनी शासकीय स्थिति का फायदा उठाकर ऐसी जेल, प्रतिपे्रषण गृह स्थान या संस्था के किसी निवासी से बलात्संग करेगा, या
- किसी अस्पताल के प्रबंध या कर्मचारीवृंद में होते हुए अपनी शासकीय स्थिति का लाभ उठाकर उस अस्पताल में किसी स्त्री से बलात्संग करेगा,या(ड.)किसी स्त्री से, यह जानते हुए कि वह गर्भवती है, बलात्संग करेगा या
- किसी स्त्री से, जो बारह वर्ष से कम आयु की है, बलात्संग करेगा या
- सामूहिक बलात्संग करेगा।
- जब गर्भवती महिला के साथ बलात्संग किया गया हो
वह कठोर कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। परंतु न्यायालय ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से, जो निर्णय में उल्लिखित किये जाऐंगे, दोनों में से किसी भांति के कारावास को, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की हो सकेञ्गी दण्ड दे सकेगा।
इस धारा में तीन स्पष्टीकरण दिये गए है, प्रथम स्पष्टीकरण के अंतर्गत बताया गया है कि जिन व्यक्तियों के समूह में से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा सबके सामान्य आशय को अग्रसर करने में किसी स्त्री से बलात्संग किया जाता है, वहां ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने उस उपधारा के अर्थ में सामूहिक बलात्संग किया है।
द्वितीय स्पष्टीकरण के अंतर्गत बताया गया है कि स्त्रियों या बालकों को किसी संस्था से स्त्रियों और बालकों को ग्रहण करने और उनकी देखभाल करने के लिए स्थापित या अनुरक्षित कोई संस्था अभिप्रेत है, चाहे वह उसका नाम अनाथालय हो या उपेक्षित स्त्रियों या बालकों के लिए गृह हो या विधवाओं के लिए गृह या कोई भी अन्य नाम हों।
तृतीय स्पष्टीकरण के अन्तर्गत बताया गया है कि अस्पताल से अस्पताल का अहाता अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत ऐसी किसी संस्था का आहता है जो उल्लंघन(आरोग्य स्थापना) के दौरान व्यक्तियों को या चिकित्सीय ध्यान या पुर्नवास की अपेक्षा रखने वाले व्यक्तियों का ग्रहण करने और उनका आचार करने के लिए है।
धारा 376 (क) भारतीय दंड संहिता :-
पृथक रहने के दौरान किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ सम्भोग करने की दशा में वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
धारा 376 (ख) भारतीय दंड संहिता :-
लोक सेवक द्वारा अपनी अभिरक्षा में किसी स्त्री के साथ सम्भोग करने की दशा में जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की ही हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 376 ग भारतीय दंड संहिता :-
जेल, प्रतिप्रेषण गृह आदि के अधीक्षक द्वारा सम्भोग की स्थिति में वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 376 घ भारतीय दंड संहिता :-
अस्पताल के प्रबंधक या कर्मचारीवृन्द आदि के किसी सदस्य द्वारा उस अस्पताल में किसी स्त्री के साथ सम्भोग करेगा तो वह दोनों में किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 377 भारतीय दंड संहिता :-
प्रकृति विरुद्ध अपराध के बारे में है जो यह बताती है कि जो कोई किसी पुरुष, स्त्री या जीव वस्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रिय-भोग करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

सीडो (कन्वेंशन ऑन द एलीमिनेशन ऑफ ऑल फार्म्स ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेन्स्ट वुमेन)

सीडो (कन्वेंशन ऑन द एलीमिनेशन ऑफ ऑल फार्म्स ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेन्स्ट वुमेन)
सीडो ने उत्पीड़न की परिभाषा को बढ़ाकर उसमें महिला उत्पीड़न को भी शामिल कर लिया है। सीडो के अनुसार पारम्परिक धारणाएं जो महिलाओं को पुरुषों से गौण मानती हैं या उनकी रूढ़िवादी भूमिका तय करती हैं, उनकी वजह से महिलाओं पर अनेक तरह से अत्याचार हुए हैं जैसे पारिवारिक अत्याचार, जबरन विवाह, दहेज हत्या इत्यादि। महिलाओं पर इस तरह के शारीरिक और मानसिक अत्याचारों का परिणाम है,उन्हें समाज में समान दर्जा मिलने से वंचित करना एवं उन्हें उनके मानवाधिकारों का प्रयोग करने से रोकना सब उत्पीडऩ के दायरे में आते हैं।
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
विधिक सेवाएँ प्राधिकरण अधिनियम, 1987, की धारा 12 तथा नियम 1996 के नियम 19 के अन्तर्गत मुफ्त कानूनी सहायता निम्न को मिल सकती हैः-
(क) कोई भी भारतीय नागरिक जिसको सभी साधनों से वार्षिक आय पचीस हजार रूपये से अधिक नहीं है। (उप-मंडल स्तर, जिला स्तर, उच्च न्यायालय),
(ख) कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी सभी साधनों से वार्षिक आय, पचास हजार रूपये से अधिक नहीं है (उच्चतम न्यायालय स्तर पर)
(ग) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्गो के सदस्यों को,
(घ) देह व्यापार में पीडि़त अथवा बेगार (बन्धुआ मजदूरों) को,
(ड़) महिलाओं को,
(च) नाबालिग बच्चों जैसे बच्चे अट्ठारह वर्ष तक की आयु के ऐसे बच्चों को जो संरक्षण और प्रतिपालन अधिनियम 1890 के अन्तर्गत प्ररिपालक की देख रेख में हों,
(छ) मानसिक रोगियों या विकलांग व्यक्तियों को जैसे कि अंधे, बहुत कम दिखाई देने वाले, बहरे, कमजोर दिमाग वाले, लूले लंगड़े व कुष्ठ रोग से पीडि़त रहे व्यक्तियों को,
(ज) सामूहिक संकट, मानव जातीय हिंसा, जातीय अत्याचार, बाढ़ सूखा, भूचाल अथवा औद्योगिक विपात्ति से पीडि़त होने के कारण अनर्जित अभाव की परिस्थितियों के अधीन व्यक्तियों को,
(झ) श्रमिकों को,
(ञ) ऐसे व्यक्तियों को जो देह व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की धारा (2) के खंड (छ) के अंतर्गत अभिरक्षण में रखे गये हो तथा किशोर न्याय अधिनियम 1986 की धारा (2) के खंड (ज) के अंतर्गत किशोर गृह में अभिरक्षित व्यक्तियों को,
(ट) मानसिक अस्पताल या नर्सिंग होम में दाखिल व्यक्तियों को,
(ठ) ऐसा कोई केस जिसके निर्णय से गरीब तथा कमजोर वर्गों से सम्बन्धित अधिकांश बहुसंख्यक व्यक्तियों के मामले प्रभावित होने की संभावना हो,
(ड) उन विशेष मामलों में ऐसे किसी व्यक्ति को जिसके लिए अभिलिखित कारणों के लिए विधिक सेवा का पात्र समझा जाए चाहे वहां साधन परीक्षण संतुष्टि् न भी हो
(ढ) उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के आदेशनुसार अहम केसों में
(न) यथार्थ लोकहित की दशा में किसी व्यक्ति को।
मुफ्त कानूनी सेवा निम्न तरीके से दी जा सकती हैः-
(1) कोर्ट फीस, तलवाना, गवाहों का खर्चा, पेपर बुक तैयार करवाने का खर्चा, वकील की फीस तथा अन्य खर्च जो कानूनी कार्यवाही करने मे लगते हो, ऐसे सब खर्चो की आदायगी से।
(2) कानूनी कार्यवाही करने में वकील द्वारा पैरवी की फीस अदा करके।
(3) कानूनी कार्यवाही के फैसलों, आदेशों टिप्पणी या ब्यानों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए लगे खर्चे की भरपाई करके।
(4) अपील की पेपर बुक तैयार करने के लिए ताकि इसमें विधक कार्यवाहियों के लिए संबंधित खर्चे जैसा कि टाइपिंग, अनुवाद, प्रिंटिंग वगैरा पर किये गए खर्चे की भरपाई से।
(5) विविध दस्तावेजों, का प्रारूञ्पण/ड्राफ्टिंग प्राप्त करने के लिए किये गए खर्चे की आदायगी से।
मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए निम्न को सम्पर्क किया जाना चाहिए-
(1) उच्चतम न्यायालय पर :-
सदस्य सचिव,
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण
12/11, जामनगर हाऊस,
नई दिल्ली, पिन कोड- 110011
या
सचिव,
उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति,
109, लायर्स चैम्बर्ज,
पी.ओ.विंग, सुप्रीम कोर्ट कम्पाऊड,
नई दिल्ली, पिन कोड-110011
(2) उच्च न्यायालय परः-
कार्यकारी अध्यक्ष / सदस्य सचिव
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण,
एस.सी.ओ. न.-20 पहली मंजिल,
सैक्टर 7 सी, चण्डीगढ -160019
पंजीकरण अधिकारी (रजिस्ट्रार)
पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय एवं सचिव
उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय, चण्डीगढ़
पिन कोड - 160001
(3) जिला स्तर पर :-
जिला एवं सत्र न्यायाधीश व
अध्यक्ष / मुख्य दण्डाधिकारी
एवं सचिव,
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण
नोट :- अगर प्रधान कार्यालय में किसी जिला एवं सत्र न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की गई है तो मुफ्त कानूनी सहायता के लिए याचिका मुख्य अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, वरिष्ठ अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश / वरिष्ठ् अधिकारी को दिया जा सकता है।
(4) उप मंडल स्तर पर -
अतिरिक्त सिविल जज
(सीनियर डिवीजन)
एवं अध्यक्ष उप-मंडल
विधिक सेवा समिति ।
महिलाओं के सहायतार्थ सरकार ने जिला स्तर पर समितियों का गठन किया हुआ है, यह समितियां महिलाओं की हर संभव सहायता करती हैं।
जिला जनसंपर्क एंव कष्ट निवारण समिति
इस समिति द्वारा महिलाओं सहित सभी वर्गों के सभी प्रकार के मसलों का मौके पर ही निवारण करने का प्रयास किया जाता है। इस समिति का अध्यक्ष माननीय मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, संसदीय सचिव, विधायक आदि में से कोई भी हो सकता है तथा समिति के उपाध्यक्ष जिला के उपायुक्त होते हैं। इसके सदस्य वरिष्ठ अधीक्षक, वरिष्ठ अधिकारी, गैर सरकारी संगठनों के सदस्य, बुद्धिजीवी व समाजसेवी होते हैं। इस समिति की मीटिंग के दौरान सभी विभागों के आला अधिकारी उपस्थित होते हैं ताकि शिकायत का मौके पर ही निवारण किया जा सके।
जिला यौन उत्पीड़न समिति
उच्चतम न्यायालय के फैसले (विशाखा बनाम राजस्थान) के आदेशानुसार प्रदेश सरकार ने हर जिले में एक समिति बनाई है। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, निजी व सरकारी दफ्तर, न्यायालय परिसर, बस स्टैंड इत्यादि सार्वजनिक स्थानों पर छेड़छाड़ व यौन उत्पीड़न करने वालों पर लगाम कसने हेतु इस समिति का गठन किया गया है। इस समिति के सदस्यों में प्रत्येक जिले के उपायुक्त, सब डिविजन मजिस्ट्रेट, पुलिस कप्तान, हर विभाग के आयुक्त, रजिस्ट्रार पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय चंडीगढ़, गैर सरकारी संस्था के सदस्य शामिल होते हैं।
जिला दहेज उन्मूलन सलाह कार्यसमिति
सरकार ने दहेज की बढ़ती समस्या को देखते हुए हर जिले में दहेज उन्मूलन समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्ष कार्यक्रम अधिकारी/लेडिज सर्कल सुपरवाइजर होती हैं, तथा इसके सदस्यों में बाल विकास परियोजना अधिकारी, मुख्य सेविका तहसील कल्याण अधिकारी, दो महिला समाज सेविकाएँ शामिल होती हैं।
महिला उत्पीड़न के खिलाफ समिति का गठन
केंद्र सरकार के आदेश पर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के तुरंत निवारण हेतु जिला स्तरीय समिति बनाई गई। इस समिति के अध्यक्ष जिला उपायुक्त होते हैं तथा आरक्षी अधीक्षक, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला न्यायवादी, कार्यक्रञ्म अधिकारी जिला बाल विकास योजना, लेडिज सर्कल सुपरवाइजर, दो महिला समाजसेविकाएं, जिला के दो वरिष्ठ वकील (जिसमें एक महिला वकील अनिवार्य है) तथा कोई अन्य सदस्य हो सकते हैं।
इस समिति का कार्य निम्न प्रकार हैः-
महिलाओं के अधिकारों को लेकर उचित कदम उठाना।
महिलाओं पर अत्याचारों की शिकायत को दर्ज कर, जाँच कर फैसला सुनाना।
महिलाओं पर हुए अत्याचार की जाँच करते समय जिला पुलिस/जिला मजिस्ट्रेट/जिला न्यायालय के साथ समन्वय बनाए रखना।
महिलाओं के खिलाफ फौजदारी मुकद्मा दायर होने पर उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना।
स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा माँग किए जाने पर कानूनी मदद व सलाह देना।
महिला उत्पीड़न के केसों की सुनवाई के दौरान उसकी मदद करना व जाँच करना।
परिवार परामर्श केंद्र, कौटोम्बिक न्यायालय/कानूनी सहायता केंद्र के साथ मिलकर काम करना।
गैर सरकारी संस्था, वकील शिक्षण संस्थान व मीडिया के साथ मिलकर महिलाओं के साथ कानूनी साक्षरता व उनके अधिकारों के बारे प्रचार व प्रसार करना।
प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरूपयोग का बिनियम/निवारण) समिति
इस समिति का मुख्य कार्य लिंगानुपात पर कंट्रोल करना होता है। यह समिति किसी भी नर्सिंग होम में भ्रूण हत्या, अल्ट्रासाउंड द्वारा लिंग जांच व अन्य तरीके से कन्या भ्रूण हत्या के विषय में जानकारी मिलते ही कार्रवाई करती है। इस समिति के अध्यक्ष सिविल सर्जन होते हैं तथा सदस्यों में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, जिला मलेरिया अधिकारी, बाल विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी, महिला चिकित्सा अधिकारी, जिला लोक संपर्क अधिकारी, जिला परिवार कल्याण अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट, कार्यक्रम अधिकारी, बाल विकास परियोजना अधिकारी, इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष, प्रधानाध्यापिका, समाजसेविकाएँ, सचिव जिला रेड क्रास सोसाइटी व गैर सरकारी संस्था के सदस्य शामिल होते हैं।

धारा 313 स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात

धारा 313
स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करने के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास या जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।
धारा 314
धारा 314 के अंतर्गत बताया गया है कि गर्भपात कारित करने के आशय से किये गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु में दस वर्ष का कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है और यदि इस प्रकार का गर्भपात स्त्री की सहमति के बिना किया गया है तो कारावास आजीवन का होगा।
धारा 315
धारा 315 के अंतर्गत बताया गया है कि शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के पश्चात्‌ उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य से सम्बन्धित यदि कोई अपराध होता है, तो इस प्रकार के कार्य करने वाले को दस वर्ष की सजा या जुर्माना दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरुपयोग का विनियम व निवारण) अधिनियम, 1944

प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरुपयोग का विनियम व निवारण) अधिनियम, 1944
भ्रूण का लिंग जाँचः-
भारत सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोकथाम के उद्देश्य से प्रसव पूर्व निदान तकनीक के लिए 1994 में एक अधिनियम बनाया। इस अधिनियम के अनुसार भ्रूण हत्या व लिंग अनुपात के बढ़ते ग्राफ को कम करने के लिए कुछ नियम लागू किए हैं, जो कि निम्न अनुसार हैं:
-गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच करना या करवाना।
- शब्दों या इशारों से गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग के बारे में बताना या मालूम करना।
- गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच कराने का विज्ञापन देना।
- गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे बच्चें के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाना गैर कानूनी है।
-कोई भी व्यक्ति रजिस्टे्रशन करवाएँ बिना प्रसव पूर्व निदान तकनीक(पी.एन.डी.टी.) अर्थात अल्ट्रासाउंड इत्यादि मशीनों का प्रयोग नहीं कर सकता।
-जाँच केंद्र के मुख्य स्थान पर यह लिखवाना अनिवार्य है कि यहाँ पर भ्रूण के लिंग (सैक्स) की जाँच नहीं की जाती, यह कानूनी अपराध है।
-कोई भी व्यक्ति अपने घर पर भ्रूण के लिंग की जाँच के लिए किसी भी तकनीक का प्रयोग नहीं करेगा व इसके साथ ही कोई व्यक्ति लिंग जाँचने के लिए मशीनों का प्रयोग नहीं करेगा।
- गर्भवती महिला को उसके परिजनों या अन्य द्वारा लिंग जाँचने के लिए प्रेरित करना आदि भू्रण हत्या को बढ़ावा देने वाली अनेक बातें इस एक्ट में शामिल की गई हैं।
-उक्त अधिनियम के तहत पहली बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष की कैद व पचास हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।
- दूसरी बार पकड़े जाने पर पाँच वर्ष कैद व एक लाख रूपये का जुर्माना हो सकता है।
लिंग जाँच करने वाले क्लीनिक का रजिस्टे्रशन रद कर दिया जाता है।

गर्भपात का कानून

गर्भपात का कानून
(गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971)
गर्भवती स्त्री कानूनी तौर पर गर्भपात केवल निम्नलिखित स्थितियों में करवा सकती है :
1. जब गर्भ की वजह से महिला की जान को खतरा हो ।
2. महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
3. गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो।
4. बच्चा गंभीर रूञ्प से विकलांग या अपाहिज पैदा हो सकता हो।
5. महिला या पुरुष द्वारा अपनाया गया कोई भी परिवार नियोजन का साधन असफल रहा हो।
-यदि इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद हो तो गर्भवती स्त्री एक डॉक्टर की सलाह से बारह हफ्तों तक गर्भपात करवा सकती है। बारह हफ्ते से ज्यादा तक बीस हफ्ते (पाँच महीने) से कम गर्भ को गिरवाने के लिए दो डॉक्टर की सलाह लेना जरुरी है। बीस हफ्तों के बाद गर्भपात नहीं करवाया जा सकता है।
- गर्भवती स्त्री से जबर्दस्ती गर्भपात करवाना अपराध है।
- गर्भपात केवल सरकारी अस्पताल या निजी चिकित्सा केंद्र जहां पर फार्म बी लगा हो, में सिर्फ रजिस्ट्रीकृत डॉक्टर द्वारा ही करवाया जा सकता है।

सती प्रथा पर कानून

सती प्रथा पर कानून
(सती प्रथा निवारण अधिनियम, 1787)
सती प्रथा
यदि कोई स्त्री सती होने की कोशिश करती है उसे छः महीने कैद तथा जुर्माने की सजा होगी।
सती होने के लिए प्रेरित करना या सहायता करना
यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को सती होने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित करे या उसको सती होने में सहायता करे तो उसे मृत्यु दण्ड या उम्रकैद तक की सजा होगी।
समान काम, समान वेतन
समानता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में है पर यह लैंगिक न्याय के दायरे में 'समान काम, समान वेतन' के दायरे में महत्वपूर्ण है। 'समान काम, समान वेतन' की बात संविधान के अनुच्छेद 39 (घ) में कही गयी है पर यह हमारे संविधान के भाग चार 'राज्य की नीति के निदेशक तत्व' के अन्दर है। महिलायें किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं है। यदि वे वही काम करती है जो कि पुरुष करते हैं तो उन्हें पुरुषों के समान वेतन मिलना चाहिये। यह बात समान पारिश्रमिक अधिनियम में भी कही गयी है।

दहेज पर कानून

दहेज पर कानून
दहेज प्रतिशोध अधिनियम,1961
शादी से संबंधित जो भी उपहार दबाव या जबरदस्ती के कारण दूल्हे या दुल्हन को दिये जाते हैं, उसे दहेज कहते है। उपहार जो मांग कर लिया गया हो उसे भी दहेज कहते हैं।
-दहेज लेना या देना या लेने देने में सहायता करना अपराध है। शादी हुई हो या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता है। इसकी सजा है पाँच साल तक की कैद, पन्द्रह हजार रूञ्.जुर्माना या अगर दहेज की रकम पन्द्रह हजार रूञ्पये से ज्यादा हो तो उस रकम के बराबर जुर्माना।
- दहेज मांगना अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छःमहीनों की कैद या जुर्माना।
-दहेज का विज्ञापन देना भी एक अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छः महीनों की कैद या पन्द्रह हजार रूञ्पये तक का जुर्माना।

घरेलु हिंसा

घरेलु हिंसा
अब बात-बात पर महिलाओं पर अपना गुस्सा उतारने वाले पुरुष घरेलू हिंसा कानून के फंदे में फंस सकते हैं।
इतना ही नहीं, लडक़ा न पैदा होने के लिए महिला को ताने देना,
उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाना या
लडक़ी के न चाहने के बावजूद उसे शादी के लिए बाध्य करने वाले पुरुष भी इस कानून के दायरे में आ जाएंगे।
इसके तहत दहेज की मांग की परिस्थिति में महिला या उसके रिश्तेदार भी कार्रवाई कर पाएँगे।
महवपूर्ण है कि इस कानून के तहत मारपीट के अलावा यौन दुर्व्यवहार और अश्लील चित्रों, फिल्मों कोञ् देखने पर मजबूर करना या फिर गाली देना या अपमान करना शामिल है।
पत्नी को नौकरी छोडऩे पर मजबूर करना या फिर नौकरी करने से रोकना भी इस कानून के दायरे में आता है।
इसके अंतर्गत पत्नी को पति के मकान या फ्लैट में रहने का हक होगा भले ही ये मकान या फ्लैट उनके नाम पर हो या नहीं।
इस कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में जेल के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है।
लोगों में आम धारणा है कि मामला अदालत में जाने के बाद महीनों लटका रहता है, लेकिन अब नए कानून में मामला निपटाने की समय सीमा तय कर दी गई है। अब मामले का फैसला मैजिस्ट्रेट को साठ दिन के भीतर करना होगा।

दहेज हत्या पर कानून

दहेज हत्या पर कानून :
(धारा 304ख, 306भारतीय दंड संहिता)
-यदि शादी के सात साल के अन्दर अगर किसी स्त्री की मृत्यु हो जाए,
-गैर प्राकृतिक कारणों से, जलने से या शारीरिक चोट से, आत्महत्या की वजह से हो जाए,
-और उसकी मृत्यु से पहले उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार ने उसके साथ दहेज के लिए क्रूर व्यवहार किया हो,
तो उसे दहेज हत्या कहते हैं। दहेज हत्या के संबंध में कानून यह मानकर चलता है कि मृत्यु ससुराल वालों के कारण हुई है।
इन अपराधों की शिकायत कौन कर सकता हैः-
1. कोई पुलिस अफसर
2. पीडि़त महिला या उसके माता-पिता या संबंधी
3. यदि अदालत को ऐसे किसी केस का पता चलता है तो वह खुद भी कार्यवाई शुरूञ् कर सकता है।

भरण पोषण पर कानून

भरण पोषण पर कानून
(धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता)
महिला का भरण पोषण
यदि किसी महिला के लिए अपना खर्चा- पानी वहन करना संभव नहीं है तो वह अपने पति, पिता या बच्चों से भरण-पोषण की माँग कर सकती।
विवाह संबंधी अपराधों के विषय में भारतीय दण्ड संहिता 1860,
धारा 493 से 498 के प्रावधान करती है।
धारा 493
धारा 493 के अन्तर्गत बताया गया है कि विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास की स्थिति में, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिनकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 494
धारा 494 के अन्तर्गत पति या पत्नी के जीवित रहते हुए विवाह करने की स्थिति अगर वह विवाह शून्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। बहुविवाह के लिए आवश्यक है कि दूसरी शादी होते समय शादी के रस्मो-रिवाज पर्याप्त ढंग से किये जाएं।
धारा 494 क
धारा 494क में बताया गया है कि वही अपराध पूर्ववती विवाह को उस व्यक्ति से छिपाकर जिसके साथ पश्चात्‌वर्ती विवाह किया जाता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।
धारा 496
धारा 496 में बताया गया है कि विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्ण विवाहकर्म पूरा कर लेने की स्थिति में से वह दोनों में किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 497
व्यभिचार की स्थिति में वह व्यक्ति जो यह कार्य करता है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा। ऐसे मामलों में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं होगी।
धारा 498
धारा 498 के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति विवाहित स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाता है या ले आना या निरूञ्द्घ रखना है तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
धारा 498 क
सन्‌ 1983 में भारतीय दण्ड संहिता में यह संशोधन किया गया जिसके अन्तर्गत अध्याय 20 क, पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में, अन्त स्थापित किया गया इस अध्याय के अन्तर्गत एक ही धारा 498-क है, जिसके अन्तर्गत बताया गया है कि किसी स्त्री के पति या पति के नातेदारों द्वारा उसके प्रति क्रूरता करने की स्थिति में दण्ड एवं कारावास का प्रावधान है इसके अन्तर्गत बताया गया है कि जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, उसे कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
क्रूरताा दो तरह की हो सकती है - मानसिक तथा शारीरिक
- शारीरिक क्रूरता का अर्थ है महिला को मारने या इस हद तक शोषित करना कि उसकी जान, शरीर या स्वास्थ्य को खतरा हो।
-मानसिक क्रूरता जैसे- दहेज की मांग या महिला को बदसूरत कहकर बुलाना इत्यादि।
-किसी महिला या उसके रिश्तेदार या संबंधी को धन-संपति देने के लिये परेशान किया जाना भी क्रूरता है।
-अगर ऐसे व्यवहार के कारण औरत आत्महत्या कर लेती है तो वह भी क्रूरता कहलाती है।
यह धारा हर तरह की क्रूरता पर लागू है चाहे कारण कोई भी हो केवल दहेज नहीं।

क्या कहते हैं कानून और मानवाधिकार

क्या कहते हैं कानून और मानवाधिकार
पूछताछ के दौरान अधिकार
-आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-160 के अंतर्गत किसी भी महिला को पूछताछ के लिए थाने या अन्य किसी स्थान पर नहीं बुलाया जाएगा।
-उनके बयान उनके घर पर ही परिवार के जिम्मेदार सदस्यों के सामने ही लिए जाएंगे।
- रात को किसी भी महिला को थाने में बुलाकर पूछताछ नहीं करनी चाहिए। बहुत जरुरी हो तो परिवार के सदस्यों या 5 पड़ोसियों के सामने उनसे पूछताछ की जानी चाहिए।
-पूछताछ के दौरान शिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाए।
गिरफ्तारी के दौरान अधिकार
-महिला अपनी गिरफ्तारी का कारण पूछ सकती है।
-गिरफ्तारी के समय महिला को हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी।
-महिला की गिरफ्तारी महिला पुलिस द्वारा ही होनी चाहिए।
-सी.आर.पी.सी. की धारा-47(2) के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को ऐसे रिहायशी मकान से गिरफ्तार करना हो, जिसकी मालकिन कोई महिला हो तो पुलिस को उस मकान में घुसने से पहले उस औरत को बाहर आने का आदेश देना होगा और बाहर आने में उसे हर संभव सहायता दी जाएगी।
-यदि रात में महिला अपराधी के भागने का खतरा हो तो सुबह तक उसे उसके घर में ही नजरबंद करके रखा जाना चाहिए। सूर्यास्त के बाद किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
-गिरफ्तारी के 24् घंटों के भीतर महिला को मजिस्टे्रट के समक्ष पेश करना होगा।
-गिरफ्तारी के समय महिला के किसी रिश्तेदार या मित्र को उसके साथ थाने आने दिया जाएगा।
थाने में महिला अधिकार
-गिरफ्तारी के बाद महिला को केवल महिलाओं के लिए बने लॉकअप में ही रखा जाएगा या फिर महिला लॉकअप वाले थाने में भेज दिया जाएगा।
-पुलिस द्वारा मारे-पीटे जाने या दुर्व्यवहार किए जाने पर महिला द्वारा मजिस्टे्रट से डॉक्टरी जांच की मांग की जा सकती है।
-सी.आर.पी.सी. की धारा-51 के अनुसार जब कभी किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाता है और उसे हवालात में बंद करने का मौका आता है तो उसकी तलाशी किसी अन्य स्त्री द्वारा शिष्टता का पालन करते हुए ली जाएगी।
तलाशी के दौरान अधिकार
-धारा-47(2)के अनुसार महिला की तलाशी केवल दूसरी महिला द्वारा ही शालीन तरीके से ली जाएगी। यदि महिला चाहे तो तलाशी लेने वाली महिला पुलिसकर्मी की तलाशी पहले ले सकती है। महिला की तलाशी के दौरान स्त्री के सम्मान को बनाए रखा जाएगा। सी.आर.पी.सी. की धारा-1000 में भी ऐसा ही प्रावधान है।
जांच के दौरान अधिकार
-सी.आर.पी.सी. की धारा-53(2) के अंतर्गत यदि महिला की डॉक्टरी जांच करानी पड़े तो वह जांच केवल महिला डॉक्टर द्वारा ही की जाएगी।
-जांच रिपोर्ट के लिए अस्पताल ले जाते समय या अदालत में पेश करने के लिए ले जाते समय महिला सिपाही का महिला के साथ होना जरुरी है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराते समय अधिकार
-पुलिस को निर्देश है कि वह किसी भी महिला की एफ.आई.दर्ज करे।
-रिपोर्ट दर्ज कराते समय महिला किसी मित्र या रिश्तेदार को साथ ले जाए।
-रिपोर्ट को स्वयं पढ़ने या किसी अन्य से पढ़वाने के बाद ही महिला उस पर हस्ताक्षर करें।
-उस रिपोर्ट की एक प्रति उस महिला को दी जाए।
-पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न किए जाने पर महिला वरिष्ठस्न् पुलिस अधिकारी या स्थानीय मजिस्ट्रेट से मदद की मांग कर सकती है।
- धारा-437 के अंतर्गत किसी गैर जमानत मामले में साधारणयता जमानत नहीं ली जाती है, लेकिन महिलाओं के प्रति नरम रुख अपनाते हुए उन्हें इन मामलों में भी जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
-किसी महिला की विवाह के बाद सात वर्ष के भीतर संदिग्ध अवस्था में मृत्यु होने पर धारा-174(3) के अंतर्गत उसका पोस्टमार्टम प्राधिकृञ्त सर्जन द्वारा तथा जांच एस.डी.एम. द्वारा की जानी अनिवार्य है।
-धारा-416 के अंतर्गत गर्भवती महिला को मृत्यु दंड से छूट दी गई है।

अपराध धाराएं और गिरफ्तारी/सजा

अपराध धाराएं और गिरफ्तारी/सजा

भारतीय दंड संहिता

भारतीय समाज को क़ानूनी रूप से व्यवस्थित रखने के लिए सन 1860 में लार्ड मेकाले की अध्यक्षता में भारतीय दंड संहिता (Indian Pinal Code) बनाई गई थी। इस संहिता में विभिन्न अपराधों को सूचीबद्ध कर उस में गिरफ्तारी और सजा का उल्लेख किया गया है। इस में कुल मिला कर 511 धाराएं हैं।  कुछ खास धाराएं निम्न हैं -

धारा (Section)   अपराध (Offence)         सजा (Punishment)               जमानत/गिरफ्तारी   (Bail provision)

13- जुआ खेलना/सट्टा लगाना                   1 वर्ष की सजा और 1000 रूपये जुर्माना
      -सांप्रदायिक दंगा भड़काने में लिप्त      5 वर्ष की सजा

99  से 106 -व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के लिए बल प्रयोग का अधिकार -

147-बलवा करना (Rioting)                      2 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों   गिरफ्तार/जमानत होगी

161-रिश्वत लेना/देना                              3 वर्ष की सजा/जुरमाना या दोनों  गिरफ्तार/जमानत नहीं

171-चुनाव में घूस लेना/देना                     1 वर्ष की सजा/500 रुपये जुर्माना  गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी

177- सरकारी कर्मचारी/पुलिस को गलत सूचना देना  6 माह की सजा/1000 रूपये जुर्माना

186-सरकारी काम में बाधा पहुँचाना          3 माह की सजा/500 रूपये जुर्माना                          "
191 - झूठी गवाही देना
193-न्यायालयीन प्रकरणों में झूठी गवाही  3/ 7 वर्ष की सजा और जुरमाना                              "

216- लुटेरे/डाकुओं को आश्रय देने के लिए दंड
224/25 -विधिपूर्वक अभिरक्षा से छुड़ाना     2 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों
231/32 - जाली सिक्के बनाना                  7 वर्ष की सजा और जुर्माना  गिरफ्तार/जमानत नहीं

255-सरकारी स्टाम्प का कूटकरण           10 वर्ष या आजीवन कारावास की सजा                      "
264-गलत तौल के बांटों का प्रयोग            1 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों      गिरफ्तार/जमानत होगी

267- औषधि में मिलावट करना              
272- खाने/पीने की चीजों में मिलावट          6 महीने की सजा/1000 रूपये जुर्माना /दोनों गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी
274 /75- मिलावट की हुई औषधियां बेचना

279- सड़क पर उतावलेपन/उपेक्षा से वाहन चलाना  6 माह की सजा या 1000 रूपये का जुरमाना
292-अश्लील पुस्तकों का बेचना                2 वर्ष की सजा और 2000 रूपये जुर्माना    गिरफ्तार/जमानत होगी   
294- किसी धर्म/धार्मिक स्थान का अपमान           2 वर्ष की सजा

302- हत्या/कत्ल (Murder)                      आजीवन कारावास /मौत की सजा   गिरफ्तार/जमानत नहीं
306- आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण            10 वर्ष की सजा और जुरमाना
309- आत्महत्या करने की चेष्टा करना     1 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों     गिरफ्तार/जमानत
311- ठगी करना                                   आजीवन कारावास और जुरमाना       गिरफ्तार/जमानत नहीं
323- जानबूझ कर चोट पहुँचाना          

354- किसी स्त्री का शील भंग करना        2 वर्ष का कारावास/जुरमाना/दोनों     गिरफ्तार/जमानत
363- किसी स्त्री को ले भागना(Kidnapping)   7 वर्ष का कारावास और जुरमाना  गिरफ्तार/जमानत
366- नाबालिग लड़की को ले भागना  

376- बलात्कार करना(Rape)               10 वर्ष/आजीवन कारावास   गिरफ्तार नहीं /जमानत होगी
377-अप्राकृतिक कृत्य अपराध(Un natural offence)  5 वर्ष की सजा और जुरमाना गिरफ्तार/जमानत नहीं
379-चोरी (सम्पत्ति) करना                 3 वर्ष का कारावास /जुरमाना/दोनों  गिरफ्तार/जमानत

392-लूट                                              10 वर्ष की सजा
395-डकैती (Decoity)                           10 वर्ष या आजीवन कारावास   गिरफ्तार नहीं/जमानत

417- छल/दगा करना (Cheating)           1 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों   गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी
420- छल/बेईमानी से सम्पत्ति अर्जित करना   7 वर्ष की सजा और जुरमाना
446-रात में नकबजनी करना              

426- किसी से शरारत करना (Mischief)  3 माह की सजा/जुरमाना/दोनों
463- कूट-रचना/जालसाजी                  
477(क)-झूठा हिसाब करना                  

489-जाली नोट  बनाना/चलाना               10 वर्ष की सजा/आजीवन कारावास  गिरफ्तार/जमानत नहीं
493- पर स्त्री से व्यभिचार करना            10 वर्षों की सजा
494-पति/पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना            7 वर्ष की सजा और जुरमाना गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी

498/अ- अपनी स्त्री पर अत्याचार -          3 वर्ष तक की कठोर सजा
497- जार कर्म करना (Adultery)              5 वर्ष की सजा और जुरमाना
500- मान हानि                                       2 वर्ष  की सजा और जुरमाना
509- स्त्री को  अपशब्द कहना /अंगविक्षेप  करना   सादा  कारावास या जुरमाना