Tuesday, January 10, 2017

महिलाओं के कानूनी अधिकार

16 दिसंबर 2012 की रात निर्भया के साथ जो कुछ हुआ उसने देश में महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा को लेकर कड़वी सच्चाई से लोगों को रूबरू करवाया।  जरूरी है कि ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान से जुड़े हर महत्वपूर्ण कानून और प्रावधानों पर नजर डाली जाए।

जमीन जायदाद में हक

पिता की संपत्ति पर हक
महिलाओं को अपने पिता और पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार मिला हुआ है। अगर लड़की के पिता ने खुद बनाई संपति के मामले में कोई वसीयत नहीं की है, तब उनके बाद प्रॉपर्टी में लड़की को भी उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना लड़के को और उनकी मां को। जहां तक शादी के बाद इस अधिकार का सवाल है तो यह अधिकार शादी के बाद भी कायम रहेगा।
पति से जुड़े हक
संपत्ति पर हक शादी के बाद पति की संपत्ति में महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता दिया जाता है। महिला को यह अधिकार है कि उसका भरण-पोषण उसका पति करे और पति की जो हैसियत है, उस हिसाब से भरण पोषण होना चाहिए। वैवाहिक विवादों से संबंधित मामलों में कई कानूनी प्रावधान हैं, जिनके जरिए पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है।
कानूनी जानकार बताते हैं कि सीआरपीसी, हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटिनेंस ऐक्ट और घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते की मांग की जा सकती है। अगर पति ने कोई वसीयत बनाई है तो उसके मरने के बाद उसकी पत्नी को वसीयत के मुताबिक संपत्ति में हिस्सा मिलता है। लेकिन पति अपनी खुद की अर्जित संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है। पैतृक संपत्ति की अपनी पत्नी के फेवर में विल नहीं कर सकता। अगर पति ने कोई वसीयत नहीं बनाई हुई है और उसकी मौत हो जाए तो पत्नी को उसकी खुद की अर्जित संपत्ति में हिस्सा मिलता है, लेकिन पैतृक संपत्ति में वह दावा नहीं कर सकती।
अगर हो जाए अनबन
अगर पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर अनबन हो जाए और पत्नी पति से अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता चाहे तो वह सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता के लिए अर्जी दाखिल कर सकती है। साथ ही हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटेनेंस ऐक्ट की धारा-18 के तहत भी अर्जी दाखिल की जा सकती है। घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग पत्नी कर सकती है। अगर पति और पत्नी के बीच तलाक का केस चल रहा हो तो वह हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता मांग सकती है। पति-पत्नी में तलाक हो जाए तो तलाक के वक्त जो मुआवजा राशि तय होती है, वह भी पति की सैलरी और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर ही तय होती है।
मिलेंगे और अधिकार
हाल ही में केंद्र सरकार ने फैसला लिया है कि तलाक होने पर महिला को पति की पैतृक व विरासत योग्य संपत्ति से भी मुआवजा या हिस्सेदारी मिलेगी। इस मामले में कानून बनाया जाना है और इसके बाद पत्नी का हक बढ़ने की बात कही जा रही है। अगर पत्नी को तलाक के बाद पति की पैतृक संपत्ति में भी हिस्सा दिए जाने का प्रावधान किया गया तो इससे महिलाओं का हक बढ़ेगा। वैसी स्थिति में पति इस बात का दावा नहीं कर सकता कि उसके पास अपनी कोई संपत्ति नहीं है या फिर उसकी नौकरी नहीं है। पैतृक संपत्ति में हक मिलने से तलाक के वक्त जब मुआवजा तय किया जाएगा, तो पति की सैलरी, उसकी अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति के आधार पर गुजारा भत्ता और मुआवजा तय किया जाएगा।
खुद की संपत्ति पर अधिकार
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित संपत्ति को चाहे तो वह बेच सकती है। इसमें कोई दखल नहीं दे सकता। महिला इस संपत्ति का वसीयत कर सकती है और चाहे तो महिला उस संपति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है।

घरेलू हिंसा से सुरक्षा

महिलाओं को अपने पिता के घर या फिर अपने पति के घर सुरक्षित रखने के लिए डीवी ऐक्ट (डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट) का प्रावधान किया गया है। महिला का कोई भी डोमेस्टिक रिलेटिव इस कानून के दायरे में आता है।
क्या है घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना। अगर महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर मानसिक प्रताड़ना दी गई हो तो वह डीवी ऐक्ट के तहत कवर होगा। महिला के साथ मानसिक प्रताड़ना से मतलब है ताना मारना या फिर गाली-गलौज करना या फिर अन्य तरह से भावनात्मक ठेस पहुंचाना। इसके अलावा आर्थिक प्रताड़ना भी इस मामले में कवर होता है। यानी किसी महिला को खर्चा न देना या उसकी सैलरी आदि ले लेना या फिर उसके नौकरी आदि से संबंधित दस्तावेज कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है। इन तमाम मामलों में महिला चाहे वह पत्नी हो या बेटी या फिर मां ही क्यों न हो, वह इसके लिए आवाज उठा सकती है और घरेलू हिंसा कानून का सहारा ले सकती है। किसी महिला को प्रताड़ित किया जा रहा हो, उसे घर से निकाला जा रहा हो या फिर आर्थिक तौर पर परेशान किया जा रहा हो तो वह डीवी ऐक्ट के तहत शिकायत कर सकती है।
क्या है डोमेस्टिक रिलेशन
एक ही छत के नीचे किसी भी रिश्ते के तहत रहने वाली महिला प्रताड़ना की शिकायत कर सकती है और वह हर रिलेशन डोमेस्टिक रिलेशन के दायरे में आएगा। डीवी ऐक्ट के तहत एक महिला जो शादी के रिलेशन में हो तो वह ससुराल में रहने वाले किसी भी महिला या पुरुष की शिकायत कर सकती है लेकिन वह डोमेस्टिक रिलेशन में होने चाहिए। अगर महिला शादी के रिलेशन में नहीं है और उसके साथ डोमेस्टिक रिलेशन में वॉयलेंस होती है तो वह ऐसी स्थिति में इसके लिए केवल जिम्मेदार पुरुष को ही प्रतिवादी बना सकती है। अपनी मां, बहन या भाभी को वह इस ऐक्ट के तहत प्रतिवादी नहीं बना सकती।
डीवी एक्ट की धारा-12
इसके तहत महिला मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है। शिकायत पर सुनवाई के दौरान अदालत प्रोटेक्शन ऑफिसर से रिपोर्ट मांगता है। महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेलू हिंसा हुई है या फिर जहां प्रतिवादी रहते हैं, वहां शिकायत की जा सकती है। प्रोटेक्शन ऑफिसर इंसिडेंट रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत प्रतिवादी को समन जारी करता है। प्रतिवादी का पक्ष सुनने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है।
इस दौरान अदालत महिला को उसी घर में रहने देने, खर्चा देने या फिर उसे प्रोटेक्शन देने का आदेश दे सकती है। अगर अदालत महिला के फेवर में आदेश पारित करती है और प्रतिवादी उस आदेश का पालन नहीं करता है तो डीवी ऐक्ट-31 के तहत प्रतिवादी पर केस बनता है। इस एक्ट के तहत चलाए गए मुकदमे में दोषी पाए जाने पर एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। साथ ही, 20 हजार रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान है। यह केस गैर जमानती और कॉग्नेजिबल होता है।
लिव-इन रिलेशन में भी डीवी ऐक्ट
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है। डीवी ऐक्ट के प्रावधानों के तहत उन्हें मुआवजा आदि मिल सकता है। कानूनी जानकारों के मुताबिक लिव-इन रिलेशनशिप के लिए देश में नियम तय किए गए हैं। ऐसे रिश्ते में रहने वाले लोगों को कुछ कानूनी अधिकार मिले हुए हैं।
लिव-इन में अधिकार
सिर्फ उसी रिश्ते को लिव-इन रिलेशनशिप माना जा सकता है, जिसमें स्त्री और पुरुष विवाह किए बिना पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों बालिग और शादी योग्य हों। यदि दोनों में से कोई एक या दोनों पहले से शादीशुदा है तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं कहा जाएगा। अगर दोनों तलाक शुदा हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं तो इसे लिव-इन रिलेशन माना जाएगा। लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो वह उसके खिलाफ इस ऐक्ट के तहत शिकायत कर सकती है।
ऐसे संबंध में रहते हुए उसे राइट-टु-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिलेशनशिप कायम है तब तक उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन संबंध खत्म होने के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है। लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का भी अधिकार है। हालांकि पार्टनर की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में अधिकार नहीं मिल सकता। लेकिन पार्टनर के पास बहुत ज्यादा प्रॉपर्टी है और पहले से गुजारा भत्ता तय हो रखा है तो वह भत्ता जारी रह सकता है, लेकिन उसे संपत्ति में कानूनी अधिकार नहीं है। यदि लिव-इन में रहते हुए पार्टनर ने वसीयत के जरिये संपत्ति लिव-इन पार्टनर को लिख दी है तो तो मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पार्टनर को मिल जाती है।
सेक्शुअल हैरेसमेंट से प्रोटेक्शन
सेक्शुअल हैरेसमेंट, छेड़छाड़ या फिर रेप जैसे वारदातों के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। महिलाओं के खिलाफ इस तरह के घिनौने अपराध करने वालों को सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है। 16 दिसंबर की गैंग रेप की घटना के बाद सरकार ने वर्मा कमिशन की सिफारिश पर ऐंटि-रेप लॉ बनाया। इसके तहत जो कानूनी प्रावधान किए गए हैं, उसमें रेप की परिभाषा में बदलाव किया गया है। आईपीसी की धारा-375 के तहत रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को ही रेप माना गया है। साथ ही प्राइवेट पार्ट के पेनिट्रेशन के अलावा किसी चीज के पेनिट्रेशन को भी इस दायरे में रखा गया है। अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट पार्ट या फिर अन्य तरीके से पेनिट्रेशन करता है तो वह रेप होगा। अगर कोई शख्स महिला के प्राइवेट पार्ट में अपने शरीर का अंग या फिर अन्य चीज डालता है तो वह रेप होगा।
बलात्कार के वैसे मामले जिसमें पीड़िता की मौत हो जाए या कोमा में चली जाए, तो फांसी की सजा का प्रावधान किया गया। रेप में कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है। रेप के कारण लड़की कोमा में चली जाए या फिर कोई शख्स दोबारा रेप के लिए दोषी पाया जाता है तो वैसे मामले में फांसी तक का प्रावधान किया गया है।
नए कानून के तहत छेड़छाड़ के मामलों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। इसके तहत आईपीसी की धारा-354 को कई सब सेक्शन में रखा गया है। 354-ए के तहत प्रावधान है कि सेक्शुअल नेचर का कॉन्टैक्ट करना, सेक्शुअल फेवर मांगना आदि छेड़छाड़ के दायरे में आएगा। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। अगर कोई शख्स किसी महिला पर सेक्शुअल कॉमेंट करता है तो एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।
354-बी के तहत अगर कोई शख्स महिला की इज्जत के साथ खेलने के लिए जबर्दस्ती करता है या फिर उसके कपड़े उतारता है या इसके लिए मजबूर करता है तो 3 साल से लेकर 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। 354-सी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट ऐक्ट की तस्वीर लेता है और उसे लोगों में फैलाता है तो ऐसे मामले में एक साल से 3 साल तक की सजा का प्रावधान है।
अगर दोबारा ऐसी हरकत करता है तो 3 साल से 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। 354-डी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला का जबरन पीछा करता है या कॉन्टैक्ट करने की कोशिश करता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। जो भी मामले संज्ञेय अपराध यानी जिन मामलों में 3 साल से ज्यादा सजा का प्रावधान है, उन मामलों में शिकायती के बयान के आधार पर या फिर पुलिस खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज कर सकती है।
वर्क प्लेस पर प्रोटेक्शन
वर्क प्लेस पर भी महिलाओं को तमाम तरह के अधिकार मिल हुए हैं। सेक्शुअल हैरेसमेंट से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में विशाखा जजमेंट के तहत गाइडलाइंस तय की थीं। इसके तहत महिलाओं को प्रोटेक्ट किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की यह गाइडलाइंस तमाम सरकारी व प्राइवेट दफ्तरों में लागू है। इसके तहत एंप्लॉयर की जिम्मेदारी है कि वह गुनहगार के खिलाफ कार्रवाई करे।
सुप्रीम कोर्ट ने 12 गाइडलाइंस बनाई हैं। एंप्लॉयर या अन्य जिम्मेदार अधिकारी की ड्यूटी है कि वह सेक्शुअल हैरेसमेंट को रोके। सेक्शुअल हैरेसमेंट के दायरे में छेड़छाड़, गलत नीयत से टच करना, सेक्शुअल फेवर की डिमांड या आग्रह करना, महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना, अन्य तरह से आपत्तिजनक व्यवहार करना या फिर इशारा करना आता है। इन मामलों के अलावा, कोई ऐसा ऐक्ट जो आईपीसी के तहत ऑफेंस है, की शिकायत महिला कर्मी द्वारा की जाती है, तो एंप्लॉयर की ड्यूटी है कि वह इस मामले में कार्रवाई करते हुए संबंधित अथॉरिटी को शिकायत करे।
कानून इस बात को सुनिश्चित करता है कि विक्टिम अपने दफ्तर में किसी भी तरह से पीड़ित-शोषित नहीं होगी। इस तरह की कोई भी हरकत दुर्व्यवहार के दायरे में होगा और इसके लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। प्रत्येक दफ्तर में एक कंप्लेंट कमिटी होगी, जिसकी चीफ महिला होगी। कमिटी में महिलाओं की संख्या आधे से ज्यादा होगी। इतना ही नहीं, हर दफ्तर को साल भर में आई ऐसी शिकायतों और कार्रवाई के बारे में सरकार को रिपोर्ट करना होगा। मौजूदा समय में वर्क प्लेस पर सेक्शुअल हैरेसमेंट रोकने के लिए विशाखा जजमेंट के तहत ही कार्रवाई होती है। इस बाबत कोई कानून नहीं है, इस कारण गाइडलाइंस प्रभावी है। अगर कोई ऐसी हरकत जो आईपीसी के तहत अपराध है, उस मामले में शिकायत के बाद केस दर्ज किया जाता है। कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई होती है।
मेटरनिटी लीव
गर्भवती महिलाओं के कुछ खास अधिकार हैं। इसके लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद-42 के तहत कामकाजी महिलाओं को तमाम अधिकार दिए गए हैं। पार्लियामेंट ने 1961 में यह कानून बनाया था। इसके तहत कोई भी महिला अगर सरकारी नौकरी में है या फिर किसी फैक्ट्री में या किसी अन्य प्राइवेट संस्था में, जिसकी स्थापना इम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस ऐक्ट 1948 के तहत हुई हो, में काम करती है तो उसे मेटरनिटी बेनिफिट मिलेगा। इसके तहत महिला को 12 हफ्ते की मैटरनिटी लीव मिलती है जिसे वह अपनी जरूरत के हिसाब से ले सकती है। इस दौरान महिला को वही सैलरी और भत्ता दिया जाएगा जो उसे आखिरी बार दिया गया था।
अगर महिला का अबॉर्शन हो जाता है तो भी उसे इस ऐक्ट का लाभ मिलेगा। इस कानून के तहत यह प्रावधान है कि अगर महिला प्रेग्नेंसी के कारण या फिर वक्त से पहले बच्चे का जन्म होता है या फिर गर्भपात हो जाता है और इन कारणों से अगर महिला बीमार होती है तो मेडिकल रिपोर्ट आधार पर उसे एक महीने का अतिरिक्त अवकाश मिल सकता है। इस दौरान भी उसे तमाम वेतन और भत्ते मिलते रहेंगे। इतना ही नहीं डिलिवरी के 15 महीने बाद तक महिला को दफ्तर में रहने के दौरान दो बार नर्सिंग ब्रेक मिलेगा।
केन्द्र सरकार ने सुविधा दी है कि सरकारी महिला कर्मचारी, जो मां हैं या बनने वाली हैं तो उन्हें मेटरनिटी पीरियड में विशेष छूट मिलेगी। इसके तहत महिला कर्मचारियों को अब 135 दिन की जगह 180 दिन की मेटरनिटी लीव मिलेगी। इसके अलावा वह अपनी नौकरी के दौरान दो साल (730 दिन) की छुट्टी ले सकेंगी। यह छुट्टी बच्चे के 18 साल के होने तक वे कभी भी ले सकती हैं। यानी कि बच्चे की बीमारी या पढ़ाई आदि में, जैसी जरूरत हो।
मेटरनिटी लीव के दौरान महिला पर किसी तरह का आरोप लगाकर उसे नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर महिला का एम्प्लॉयर इस बेनिफिट से उसे वंचित करने की कोशिश करता है तो महिला इसकी शिकायत कर सकती है। महिला कोर्ट जा सकती है और दोषी को एक साल तक कैद की सजा हो सकती है।

ससुराल में कानूनी कवच 

अबॉर्शन के लिए महिला की सहमति अनिवार्य
महिला की सहमित के बिना उसका अबॉर्शन नहीं कराया जा सकता। जबरन अबॉर्शन कराए जाने के मामलों से निबटने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। कानूनी जानकार बताते हैं कि अबॉर्शन तभी कराया जा सकता है, जब गर्भ की वजह से महिला की जिंदगी खतरे में हो। 1971 में इसके लिए एक अलग कानून बनाया गया- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट। ऐक्ट के तहत यह प्रावधान किया गया है कि अगर गर्भ के कारण महिला की जान खतरे में हो या फिर मानसिक और शारीरिक रूप से गंभीर परेशानी पैदा करने वाले हों या गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो अबॉर्शन कराया जा सकता है।
इसके अलावा, अगर महिला मानसिक या फिर शारीरिक तौर पर इसके लिए सक्षम न हो भी तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर महिला के साथ बलात्कार हुआ हो और वह गर्भवती हो गई हो या फिर महिला के साथ ऐसे रिश्तेदार ने संबंध बनाए जो वर्जित संबंध में हों और महिला गर्भवती हो गई हो तो महिला का अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उसका अबॉर्शन कराया जाता है, तो ऐसे में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
दहेज निरोधक कानून
दहेज प्रताड़ना और ससुराल में महिलाओं पर अत्याचार के दूसरे मामलों से निबटने के लिए कानून में सख्त प्रावधान किए गए हैं। महिलाओं को उसके ससुराल में सुरक्षित वातावरण मिले, कानून में इसका पुख्ता प्रबंध है। दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए 1986 में आईपीसी की धारा 498-ए का प्रावधान किया गया है। इसे दहेज निरोधक कानून कहा गया है। अगर किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक, शारीरिक या फिर अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है। इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साथ ही यह गैर जमानती अपराध है। दहेज के लिए ससुराल में प्रताड़ित करने वाले तमाम लोगों को आरोपी बनाया जा सकता है।
सजा: इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर शादीशुदा महिला की मौत संदिग्ध परिस्थिति में होती है और यह मौत शादी के 7 साल के दौरान हुआ हो तो पुलिस आईपीसी की धारा 304-बी के तहत केस दर्ज करती है। 1961 में बना दहेज निरोधक कानून रिफॉर्मेटिव कानून है। दहेज निरोधक कानून की धारा 8 कहता है कि दहेज देना और लेना संज्ञेय अपराध है। दहेज देने के मामले में धारा-3 के तहत मामला दर्ज हो सकता है और इस धारा के तहत जुर्म साबित होने पर कम से कम 5 साल कैद की सजा का प्रावधान है। धारा-4 के मुताबिक, दहेज की मांग करना जुर्म है। शादी से पहले अगर लड़का पक्ष दहेज की मांग करता है, तब भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो सकता है।
स्त्रीधन पर महिला का अधिकार
स्त्री धन वह धन है तो महिला को शादी के वक्त उपहार के तौर पर मिलते हैं। इन पर लड़की का पूरा हक माना जाता है। इसके अलावा, वर-वधू को कॉमन यूज की तमाम चीजें दी जाती हैं, ये भी स्त्रीधन के दायरे में आती हैं। स्त्रीधन पर लड़की का पूरा अधिकार होता है। अगर ससुराल ने महिला का स्त्रीधन अपने पास रख लिया है तो महिला इसके खिलाफ आईपीसी की धारा-406(अमानत में खयानत) की भी शिकायत कर सकती है। इसके तहत कोर्ट के आदेश से महिला को अपना स्त्रीधन वापस मिल सकता है।
ऐसे निपटें पुलिस से
पुलिस हिरासत में भी महिलाओं को कुछ खास अधिकार हैं:
  • – महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है।
  • – महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती।
  • – अगर महिला को कभी लॉकअप में रखने की नौबत आती है, तो उसके लिए अलग से व्यवस्था होगी।
  • – बिना वॉरंट गिरफ्तार महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होगा और उसे जमानत संबंधी अधिकार के बारे में भी बताना जरूरी है।
  • – गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को सूचित करना पुलिस की ड्यूटी है।
  • – सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में कहा गया है कि जिस जज के सामने महिला को पहली बार पेश किया जा रहा हो, उस जज को चाहिए कि वह महिला से पूछे कि उसे पुलिस हिरासत में कोई बुरा बर्ताव तो नहीं झेलना पड़ा।
मुफ्त कानूनी सहायता
महिलाओं को फ्री लीगल ऐड दिए जाने का प्रावधान है। अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो वह फ्री कानूनी मदद ले सकती है। वह अदालत से गुहार लगा सकती है कि उसे मुफ्त में सरकारी खर्चे पर वकील चाहिए। महिला की आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, लेकिन महिला को यह अधिकार मिला हुआ है कि उसे फ्री में वकील मुहैया कराई जाए। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता कमिटी से संपर्क करेगी और महिला की गिरफ्तारी के बारे में उन्हें सूचित करेगी। लीगल ऐड कमिटी महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देगी।
पोक्सो कानून
बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराध को रोकने के लिए और बच्चों को ऐसे अपराधों से संरक्षण देने के लिए सरकार ने 14 नवंबर 2012 में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्शुअल ऑफेंसेस (पोक्सो) ऐक्ट बनाया था। ऐसे मामलों का जल्द से जल्द निपटारा हो और दोषियों को सजा सुनाए जाने से अपराध पर लगाम लगे। ये मामले संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं। नाबालिग बच्चों को प्रोटेक्ट करने के लिए यह कानून बनाया गया है। प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज (पोक्सो) ऐक्ट जेंडर न्यूट्रल कानून है और पिछले साल 14 नवंबर से प्रभावी है।
18 साल से कम उम्र के बच्चों (लड़का या लड़की) के साथ किसी तरह का सेक्शुअल ऑफेंस पोक्सो कानून के तहत अपराध होगा। इसमें पेनेट्रेटिव या नॉन पेनेट्रेटिव दोनों तरह के ऐक्ट के लिए सजा का प्रावधान है। बच्चों को अगर किसी भी तरह से सेक्शुअली अब्यूज किया जाता है, जिनमें पॉरनॉग्रफी आदि के जरिये शोषण भी शामिल है, तो इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इस कानून में सजा का प्रावधान, अपराध की गंभीरता के हिसाब से किया गया है लेकिन गंभीर मामलों में उम्रकैद तक की सजा भी दी जा सकती है।
यहां मिलेगी मदद
राष्ट्रीय महिला आयोग
फोनः 011-23237166, 23236988
कंप्लेंट सेलः 23219750
दिल्ली राज्य महिला आयोग
फोनः 
011- 23379150, 23378044
यूपी राज्य महिला आयोग
फोनः 
0522-2305870
ईमेलः up.mahilaayog@yahoo.com
महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग फोनः 022- 26590739
ईमेलः mahilaayog@vsnl.net

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